बलात्कार मुक्त भारत
कविता
*जब सुरक्षित ही नहीं हैं, बेटियाँ,*
*क्या पढ़ेंगी, क्या बढ़ेंगी, बेटियाँ,*
*क्या करें , इस क़ायदे-क़ानून का,*
*लुट रहीं हैं, जल रहीं हैं, बेटियाँ,*
*पूछिये, उस बेटी के माँ-बाप से,*
*कैसे पलती, कैसे बढ़ती बेटियाँ,*
*बेटी पैदा होना ही, क्या पाप है?*
*हीन भावनाओं से, कुंठित बेटियाँ,*
*बेटियों से ही तो, घर-परिवार है,*
*कैसा घर? जब ना रहेंगी बेटियाँ,*
*हर तरफ़ बैठे हैं कातिल,राह में,*
*कैसे बचेंगी , हमारी बेटियाँ,*
*जब तलक क़ानून, नहीं होगा सख़्त,*
*तब तलक बेफ़िक्र, नहीं बेटियाँ,*
*मोबाइलों की पोर्न-साइट, बन्द हो,*
*रोज़ होतीं हैं, शिकार बेटियाँ,*
*अपराधी कैसा भी हो, कोई भी हो,*
*तय हो फाँसी, तब बचेंगी बेटियाँ,*
*भर दो अपराधी में, इतना डर की*
*गर्व से, बेख़ौफ़ जीए, बेटियाँ,*
हर बेटियोंँ को समर्पित !