न कलम बिकता है,
न कलमकार बिकता है।
पत्र बिकता है,
न पत्रकार बिकता है ।
दिन रात लिख-लिखकर थक जाती है ये उँगलियाँ ,
तब जाके कहीं सुबह 2 रुपये का अखबार बिकता है ।।।
सचिन भारती
न कलम बिकता है,
न कलमकार बिकता है।
पत्र बिकता है,
न पत्रकार बिकता है ।
दिन रात लिख-लिखकर थक जाती है ये उँगलियाँ ,
तब जाके कहीं सुबह 2 रुपये का अखबार बिकता है ।।।
सचिन भारती